जयपुर. गर्भवती महिला और दो दिन में ढाई सौ किमी सफर..दो जिंदगियां दांव पर। एक ओर कोरोना तो दूसरी ओर रोजगार का संकट... ऐसे में जिंदगी की जद्दोजहद। लेकिन लता और परिवार के सामने भीलवाड़ा छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। 30 मार्च को पैदल ही एटा के लिए निकल पड़े।
रास्ते में कदम-कदम पर परेशानी थी। लता बताती हैं...कोरोना के डर से कोई लिफ्ट नहीं देता था और कोई देता भी था तो 2 या 3 किमी ही। हां, दानदाता खाना खिला देते थे। खैर, जैसे-तैसे हम 1 अप्रैल को जयपुर पहुंचे। नम आंखों से लता बताती हैं... ऊपरवाले की दया ही थी कि हमें जयपुर में शेल्टर होम मिल गया।
धागा फैक्ट्री बंद होने के कारण लता और सुरजीत घर जा रहे थे
पांच माह की प्रेग्नेंट और भीलवाड़ा से पति सुरजीत के साथ पैदल आई लता ने बताया वह शेल्टर हाेम में खुश है। लाॅकडाउन के बाद एटा जाएगी। लता के साथ पति भी यहीं है। दाेनाें भीलवाड़ा में एक धागा फैक्ट्री में काम करते थे। लाॅकडाउन के कारण फैक्ट्री बंद हाे गई और आने जाने के वाहन नहीं मिलने के कारण वे भीलवाड़ा से पैदल ही जयपुर तक आ गए।
दाे मासूम बच्चाें के साथ पति पत्नी रुके हैं हाेम में, बाेले हम घर जाना चाहते हैं:
इटावा निवासी असद कुमार पत्नी गीता देवी, तीन बच्चे व साली के साथ रुके हुए हैं। असद चित्ताैड़गढ़ में फैक्ट्री में काम करते थे और परिवार के साथ पैदल आए हैं। असद बताते हैं यहां परेशानी नहीं है मगर वे घर जाना चाहते हैं। छह दिन हाे गए हैं। शेल्टर हाेम में अधिकतर यूपी के हैं। सभी काे घर पहुंचाने की व्यवस्था कर दें ताे चले जाएंगे। छाेटे बच्चाें की याद में दादा दादी भी परेशान है। वे भी गांव में बीमार है। हम स्वस्थ हैं।
गेहूं की फसल पक चुकी है, हम यहां फंसे हुए हैं...चिंता है फसल खराब न हो जाए
शेल्टर हाेम में ठहरे फर्रुखाबाद निवासी तिवेश सुविधाओं से ताे खुश हैं, मगर वे घर जाना चाहते हैं। तिवेश बताते हैं गांव में गेहूं की फसल तैयार है। मां बाप, पत्नी व बच्चे गांव में है। अगर वे गांव पहुंच गए ताे फसल काट लेंगे और तीन चार दिन की भी देरी हाे गई ताे फसल खराब हो जाएगी। सरकार फर्रूखाबाद जाने की व्यवस्था कर दे ताे ठीक रहेगा। राेजाना बस एक ही चिंता सताए जाती है कि तैयार फसल खराब हाे गई ताे एक साल तक परिवार काे क्या खिलाएंगे।
गांधीनगर में स्कूल के 5 हॉल में 54 श्रमिक
गांधीनगर स्थित सीसे में पांच हाॅल में शेल्टर हाेम है। यहां 54 लाेग हैं। इनमें दाे फैमिली और तीन छाेटे बच्चे भी हैं। सुबह की चाय से लेकर रात का खाना दानदाताओं के घरों से आता है। हां, सरकार ने हमारे जैसे लोगों को स्वस्थ रखने के लिए याेगा टीचर लगा रखे हैं। हर दिन सेहत की जांच होती है। यहां तक कि ड्राइफ्रूट भी खाने के लिए दिए जाते हैं।